बिफे बैशाख १३ , १३ बैशाख २०८१, बिहीबार| थारु संम्बत:२६४७

अपन लइकन सु–संस्कारवान बनाएक जरुरी

अपन लइकन सु–संस्कारवान बनाएक जरुरी

समयके गति अपन धुरीमे बहुट तेजीसे आगे बढतबा । एके केउनाई रोक पाई समयके गतिके साथ साथे हर एक चीजमे बहट तेजीसे परिवर्तन हो रहलबा । पहिलेक समय आउर अबके समयमे बहुट अन्तर होगइलबा । उहेमेरके पहिलेक संस्कार आउर अबके संस्कारमे भी बहुट भारी अन्तर हो गइलका । आजकलके आधुनिक जमानाके संहरी नवाँ नवाँ प्रविधिके विकास होगइल बा ।

आज कले लइकन पहिलेक जइसन शिक्षा, दिक्षा, विद्या देहलेसे भर नैहोइ काकरे कि समय अनुसार जमाना बहुट बदलगइलबा इ बाट टे सबके पता बा । बढट गइल अपन लइकन, बाल बच्चनकेहे हमरे सही समयमे उचित ज्ञान, ध्यान नैकइसेकब टे लइका बिगड जइहीं, गलत रास्तामे लाग जइहीं एकरे बाद ओन्हरे गलत चीज, काम धन्धा करेलगहीं अपन घर परिवार, बाप महतारीकेहे परेशान करे लगहीं । उहेक नाते हमरे समयमे हीं अगर अपन लइकन बच्चन बढिया संस्कार दइपाबखोइ टे अवश्य बिगरेसे लइकन बचासेकबखोइ ।

कहलन कि बाल हठसे बडा कौनो हठ नैहो टे औ इ हठके कारण बच्चनके मनमे जउन चाहना उठत ओके ओकरे पूरा करेक खोजलन । वर्तमान समयमे जब बच्चनके मनमे मेर–मेरके चाहना उभरेक खर्तिन मेर–मेरके साधन उपलब्ध बा, ओके पाएक बालापनमे एक हठके रुप धारण कइ लेत । ओकहन मनमे उ वस्तु पाएक चाहना होइ जात चाहे उ वस्तु उपयोग होए या न होए । ओकरे टे खेलाएक मारे भर पुर्ति करेक हठ लगइले रहलन ।

आज टी.बी. अउर इंटरनेटके बीच बडा होइल बच्चन मनमे उपजल जिद्द खेलौना भरके चाहत भर नैरह गइला । आज बच्चनके इच्छा बदल गइला औ पहिलेक बच्चा कठवक खेलौनासे संतुष्ट होइ जात रहा, आज काल महङा इलेक्ट्रानिक उपकरण पाए बिना संतुष्ट नैहोलन । बच्चनके बेर–बेरमाँगेक दवावमे आके यदि दाइ–बाबा ओकहन आकांक्षा एक बेर पूरा कइ देही वकिन ओके हरदम पूरा करेक कइसे संभव बा ? धिरे–धिरे बच्चन बढत जिद्द औ दाइ–बाबक ओके पूरा नैकइ पाएक असमर्थता परिवारमे एक अनचाहे तनावके जन्म दइ देहत । जेकेसे आज लगभग हरेक परिवारमे बाझत नजर आत ।

आज भौतिक संस्कृतिके बढत चाँप हम्मन समाजके बहुट ढेर प्रभावित कइले बा, जे एकमेरके ‘देखावा संस्कृति’ के जन्म देहले बा । जेहमे हर मनइ अइसन कार करत बटैं, कि खाली दुसरेक देखाएक खर्तिन । अपन लगे धन नैरहके भी ओकर प्रदर्शन खर्टिन । ब्यक्तित्व विकास औ औचित्यसे एकर दूर–दूर तक कौनो संवन्ध नै हो । यी देखावा संस्कृतिसे बच्चा औ किशोर फिर अछुत नै बटैं । आज मँहङा खान–पीनसे लइके मँहङा इलेक्ट्रानिक उपकरण पाएक होड बाजी भर न, ओकहन जीवनके मुल्य समेत प्रभावित कइले बा, ओके पूरा करवाएक जिद अभिभावकनके तनाव अउर दवावमे डार देहले बा । बच्चनके जिदके आगे अभिभावकनके झुकना जइसन मजबुरी बन गइल बा । अब यी जरुरी बा कि यी बदलल परिवेशमे दाइ– बाबक सोच समझके, शान्तिक साथ यी समस्यासे निपटेक परी ।

बच्चा जइसे– जइसे बाढलन, वोइसे– वोइसे स्कूल जाए लागलन ओकरे अपन उमेरके बच्चनसे संपर्क होलन । यदि वोकहन सङ्हरियन लगे अइसन वस्तु होइ जेकेसे वोकरे आकर्षित होइही, ते वोके पाएक खर्तिन जिद करे लागलन । भले वोकहनके उ वस्तुक जरुरत रहे या न रहे, बकिन अपन सङ्हरियन बराबर देखाएक खर्तिन उ वस्तु पाइक खोजलन औ इहे कारण हो कि आज बच्चन स्वभावमे कौनो जरुरी चीज पाइक महत्व नै राखलन, जेतना अपन मन परल चीज पाइक रहत ।

आज हम्मन समाजमे या पारिवारिक परिवेशमे ढेर अइसन घटे लागल, जउन कि बच्चा स्कूलमे भी ऐसे ब्यवहार करतन, जउन भेदभाव पुर्ण होत बा । ओकरे स्कूलियोम अइसन बच्चन सङ्हरी ढेर रहलन, जेकर लग बढिया–बढिया चीज होत, औ अइसन बच्चन सङ्हरी नैरहलन, जे आर्थिक दृष्टिकोणसे कमजोर बटीन या जेकर लग खेलेक खर्तिन बढिया–बढिया खेलौना नैरहत । बच्चन खेलेक खर्तिन अत्याधुनिक मनोरंजनके साधनमे आइपेड, वीडियो गेम, टैबलेट टमान इलेक्ट्रानिक उपकरण या मनोरंजनके साधन बा जउनकि ढेर मँहङा पडत । आजके यी महङाइक दौरानमे हर मनइ नैखरीद सकतन, बकिन बच्चन जिदके आगे केकरो बस नैचलत ।

आजके दौरानमे बचपन हजारो खतरासे घिरल बा । ओहमेसे एक बिज्ञापनके भ्रामक दुनिया भी हो, जउन बिना बोलाए मेहमान हस अपन अधिकार जमइते जात बा औ यी भ्रामक दुनियक अधिक शिकार होत बाटन–– छोट बच्चा, जेहमे यी विज्ञापनके रणनीतिक सम्झेक न टे कौनो ज्ञान बा न कौनो जानकारी । ओकरे टे बस, विज्ञापनके गीत गुनगुनइते रहही औ मन चाहे चीज पाएक खर्तिन दाइ– बाबनसे जिद करते रहही । यी भा्रमक बिज्ञापनके जाल बच्चनके कलील मन भौतिक वस्तुक बटोरेक लालच मेहे आउर बच्चनके तुलनम अपनेक पछरल औ हीन सम्झे लागलन ।

बच्चनके यी जिद्द यदि अभिभावक लोग नजर अंदाज कइके मिनाही कइ देवन टे ओकरे भुसियाके अनुचित कदम उठा लेलन, जइसे– घर छोड देहना, भुसिया जएना, अपने कोठरिम बन्द होइके चुक्कुल लगा लेहना, भात नैखइना, अभिभावकके बाट नैसुनना आदी । आज हर अभिभावक बच्चनके यी हरकतसे जुझेक खर्तिन खुद मजबुर होइ जालन औ डेराइल– डेराइल हस रहलन कि कहु वोकहन बच्चा कौनो गलत कदम न उठालेवे, जेकर बदला वोकहन पश्चाताप करेक पडे ।

बच्चनके चाहत वोकहन खर्तिन सबकुछ हो जेके वोकरे पूरा करेक चाहालन औ यदि उ पूरा नैहोइ टे बहुत दुःखी होलन । अपन जिद्दके कारण बच्चा कौनो अफसोस जनक कदम न उठा लेवन, एकेसे बचेक फिर वोतने जरुरी बा । एहिक नाते पहिलेसे बच्चन समझदार बनाए औ वोकहन अपन सीमासे परिचित कराइल जाए । बच्चन बचपनसे यी बाटके बोध कराइल जाए कि वोकहन परिवारके स्थिति का बा अउर वोकर अनुरुप वोकहनके इच्छा वा आशा पूरा कइ पइना संभव बा । ढेर यी देखा गइला कि बच्चनके अभिभावक बच्चन हर माग बिना सोचले– समझले पूरा करत चलि आलन औ आगे चलके ऐसे बच्चनके मनमानी बढत जात, फिर वोकरे चाहे जउन बाट लइके बडनके नकरात्मक प्रतिकृया स्वीकार नैकइ पालन औ अनावश्यक हठ कइ बइठलन ।

बच्चनके आगे बढेमे दाइ– बाबा जउन सहयोग करे सकही वोके अवश्य करेक चाही, बकिन एतना नै करेक चाही कि बच्चा खुद प्रयास करे औ अपने अभिभावक पर निर्भर होइ जाए । यी बाटके ध्यान राखेक चाही कि अभिभावकके बच्चनके विकासमे अपन सहयोग वा मार्गदर्शन देहेक बा न वोकहनके मर्जीसे चलेक औ वोकहन मर्जीक सबकुछ मानलेहेक बा टब्बे बच्चा समझदार बन पइही औ अपन जिद्द वा जरुरतके बीच फरक समझ पइही ।

छोट बच्चा अपन हर जिद्दके खर्तिन अपन दाइ– बाबा पर निर्भर रहलन, बकिन यदि दाइ– बाबा वोकहन आत्मनिर्भर बनाएक सिखाए, मेहनतसे कमएना उपाए बताए औ वोकहनके मेहनत करेक खर्तिन प्रोत्साहित करे टे उहे बच्चा समझ पइही कि अपन परिश्रमके कौनो वस्तु पाएक केतना आनंददायक होत । ऐसही बच्चन आगे बढेपर दाइ– बाबनके सहारा बन सकलन औ वोकहन पर डारल गइल अन्यथक हठके कारणसे बच सकलजाइ ।

वास्तवमे कहेलन संगतसे गुण आत है संगतसे गुण जात है तो अपन बाल बच्चा कइसन साथी लोगनके साथ रहलबा ओन्हरे अच्छा बाटन कि नै बाटन कहि ओन्हरे गलत रास्तामे टे नैजाइत बाटन ओन्हन बहुट निगरानी करेक आवश्यक रहलबा । आउर साथ साथे ओनहन बढिया संस्कारित, संस्कारवान जगहीमे लइजाके शिक्षा दिक्षा देहेक भी बहुट आवश्यक रहलबा । अगर हमरे सब जने आएवाला देशके कर्णधार बाल बच्चन बढिया रास्तामे लइजा सेकब टे अवश्य घर, परिवार, समाज आउर राष्ट्र एक सभ्य आउर समुन्नत बन सेकी ।


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