बिफे चैत १५ , १५ चैत्र २०८०, बिहीबार| थारु संम्बत:२६४७

रानाथारू साहित्य जग : एक हरानो चलन

रानाथारू साहित्य जग : एक हरानो चलन

एक दिनकी बात हए,जब मए घरसे निकरो तओ तमान आदमी अच्छे–अच्छे कपडा लगाएक समरके जात देखो । महुँ उनके पच्छु–पच्छु चलपडो । एक घरमे बहुत भीड लगि देखो । जाके संगए हुँवा बडा रमझम होत देखके मिर मनमे उमंग आओ । सब जनी शान्त से देखत रहएँ । यज्ञमे दुलहा दुलहीन् बैठे, जौडहीँ एक बडा लम्बो आरो बारो खम्बा बाके चारौओर दिया पजरएँ । मए सोचो ज ऐसो का चिज हएँरु ? मिर मनमे खट्कन लागो फिर जौडही एक आदमी से पुछो, बिहाको जग हए कर के बताइ । बिहा देखके हम घर घैन आनके ताहीं शुरू कर दए । मए मनए मनमे जग जग …करत घर पहुचगओ ।

मिर मनमे रहो नाएगओ तौ मए ऐयासे पुछ डारो । कहि तेरू भैयाकी बिहा मे दैबुढ्नी जग बारो यज्ञ मनाइ हए । अब त घरी–घरी मनमे प्रश्न उठन लागो । काहे मनात हएँ ? बच्चा जन्मत हएत बाके शरिरमे अनेकौं किसिमके रोग व्याधी के कारणसे लक्षण दिखात हएँ , बच्चा जिनको कोइ आसरा नरहिजात हए । जैसेकी शरिर भर सेते(सेते झल्का जल–जल जाडो भरो , ऐयाको दूध नाए पिपात, रोत रहात जे ऐसे तमान रोगनके इलाज करान ताहीँ कोइ ऐसो अस्पताल नखुली रहएँ ।

कोइत जल्दिए सठी करदेत रहएँ,काहेकी पाँतमे पड् जएहयत् अपनो देउधाम मे आए के अच्छो हुइजए हए सोचत रहएँ । कोइ कोइ त मुण्डन , कोई यज्ञ और कोइत जग यज्ञ मन्नत मागत रहएँ अपने भगवान् से,बे अच्छे हुईजात रहएँत् जे सब करन पडत रहए । जे ऐसे सब दुवा खास करके दैबुढ्नी भगवान् से मागत रहए । मुण्डन बच्चा थुर खबर और दौड धुप करन बारो हुईजात हएत् अपने नातपात,आसपरोसिन् के लैके जाएक कोई बकरा मनात त कोई मुर्गा त कोई सादा मुन्डन करत हएँ ।

अभए भी चलन चल्ती मे हए,बच्चा को मण्डन खास करके बच्चा को मुमा करत हए और पिच्छु से बा कि फुवा अचरा रोकत हए । बच्चा को मुण्डन करो भओ बार दैबुढ्नी नदिया मे जाएक डुबकनी लैके छोड देत हए । बहे मुण्डन करे भए बकरा,मुर्गा को भण्डारा खाए के सब जनी अपने अपने घरे आएजात हएँ । जब बच्चा सहि सलामत से जवान् हुईजात हएत् बा के एक दिन बिहाको लगन होत हए । सत्यनार ायण को कथा होत हए । कथामे चारौ तरफ केराको पटपटा मे २५–२५ दिया और बिचमे १ दिया, जौडहीं कुरैलाको एक हँगा गाड के दुल्हा दुल्हीन् को बिहा करो जात हए ।

खास कर के कथामे एक सौ एक दिया पजारत हएँ,बहेस् यज्ञ कहात हएँ। बालक जब स्यानो होत हए तओ सबके नजरमे कि लौडा लौडिया जवान हुइगए , यिनकी बिहा करन कि उमर हुईगई हए कर के कहन लग्जात हएँ । दैबुढ्नी को मन्नत अनुसार एक दिन जग यज्ञमे दुल्हा दुल्हिन को बिहा होत हए । सत्यनारायण को पूजा करबात हएँ । घरके ठिक अग्गु पूजाके जौडही एक सौ एक सय एक दिया पजारन बारो का को खम्बा गडाएके यज्ञ करत हएँ । खम्बा मे चारौ तरफ और चुटियामे लगाएके एक सौ एक दिया पजार के रमझमके साथ बिहा करत हएँ ।


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