शुक बैशाख १४ , १४ बैशाख २०८१, शुक्रबार| थारु संम्बत:२६४७

कैसिनबा मोर मुटु

कैसिनबा मोर मुटु

सोम्या चौधरी
मै कंचनपुरके एकठो गाँउमे मोर मामा ओइनके घर बैठ्ठुु । मोर डाइ महिन सडा डिन महिन मोर मामाके घर छोरके चलजाइट् । काहे मोर डाइ महिन बाबाके घर नै लैजाइट् । मै कैसिन भाग लेके जन्मल बटु जाहा मोर दाइ बाबा हुकनके कौनो माया डुलार कुछनै पैइनु ।
मोर दाइकेफे कैसिन करम लेके आइल रहे । मोर दाइके भोज हुइलीस टे सुरु सुरुमे मोर बाबा मजा माने तर समय परिवर्तन हुइ लागलटे मोर बाबाफे परिवर्तन होगैल । जब मोर दाइ महिन जन्माइलटे मोर बाबा कहल मै यि छाइहे नै पालम । मोर मामा घरके मनै मने मजा बटैं । मोर दाइ महिन मामा हुकनके घर छोरडेले रहट । मोर मानस्किटा कमजोर हुइलक ओहोरसेमै धेउर नै सोचे सेक्ठु । मै गजब बेराम परठु मोर दाइ किल कसिक पालेसेकि मोर बाबाटे महिननै पालम कैडेहेल । मोर बाबा हे कौनो चिन्तानै हुइस मै कसिन अवस्थामे बटु । मोर बाबाटे समयके सगँ असिक परिवर्तन होगिल जसिक घरीके सुइ घुमट ओस्टेक मोर बाबाफे परिवर्तन हागैल । खै मोर भागमे बाबाके मैया, डुलार कना शब्दनै लिखलहो जसिन लागट् ।
महिनफे सामान्य मनैनके जस्ते जिनास लागट् । ओइउनके जस्ते खेलनास मन लागट मै खोले जिठुटे किउफे महिन संगे खेलैना मननै करठ । तर भगवानटे मोर भागमे खुसी कना शब्दनै लिखल हुइट् । महिन अटरा सुन्दर संसारमे जनमटे डेहल तर करमनै पैइनु । मैं मानस्कि रुपसे कमजोरटे रह,ु रहु उप्परसे मोर मुटुफे उल्ता पान्जर बाट कैडेलैं । मुटु उल्ता पान्जर रहल मनैनै बाच्ठंै कठं । कसिन मोर जिन्गी जनमटे लेनु तर धेउर जिए नै पैइनु । मोर नसिबमेनै लिखल हो सायड खुसि कना शब्द । मुटु उल्टा पान्जर बाटटे बा उप्परसे मुटुमे छेदफे बा डक्टरवा हुकरे कठैं । मै सोच्ठु यि संसारके सारा दुःख महिन डेहेल बा । महिन अभिन बहुटटे जिना रहर बा । मैटे यि सुन्दर संसारके दुइ दिनके पहुना किल हुइटु । मोर बाबा मोर दाइहेफे छोर डेहेल । मोर बाबा औरे जन्नी लानलेहट । मोर बाबा महिनटे मैयानै करनैटे मोर दाइहेफे असिक दःख काजे डेहेल । मै असिक कराइट देख्के सोच्थुमै मुवकला बटु उहे ठिके बा । असिक अपन डाइके दुःख डेखलसे मजा मै मरजाउँ । हुइनाफे कब मरजैम पत्तानै हो । मोर जिन्गीके कोनो भरोसा नै हो आज बटु काल नै हु । औरे जहनके जस्ते भगनवा महिन काजेनै बनैल । दःख डेखाइलग काजे जन्माइल । कठै सब मनैन, मनैनके जिन्गी पाइल बटिटे कुछु ना कुछु करके जिठ । मै हरेक दिन डरा डराके जिठु कब मै मरजमि असिनटे मोर जिन्गी बा । केउ मनै मुना सोच्ठै तर मुनाके डर कैसिन रहत उ हमार जस्ते मनैनसे पुछहो । जहिनि जिनास लागत उ धेउर जिएनै सेकत कैसिन दुनियाके रित ,कैसिन संसार बा ।
मै यि संसारसे जिनासे आघे सक्कु जहन कुछ कना चहठु । केउफे अपन सन्तान जसिन रहे । चाहे लुल , लाङ्खर, चाहे मोर जस्ते काजेना रहे हुकन दाइ, बाबा के मैया ओ मंमता देहो । दाइ, बाबा किल हमार साहारा हुइट । हुकरे नै हेरहिते हमनके हेरी हम्रे एकटे कमजोर रठी ओम्मेफे दाइ, बाबाके मैयानै पैबोटे कसिन लागट । बुहुट मन दुखट मै चहठु सक्कुजे अपन छाइ चाहे छावा रहे मजासे र्हेहो । असिन कर्वानै पाइ कैके जब मै मूके जिमटे भगनवाहे कहम असिक दःख अउरे जहन ना डेहो । मैफे समयमे नै अडल बटु कब का होजाए पत्ता नै हो । धन्यवाद


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