शुक बैशाख ०७ , ७ बैशाख २०८१, शुक्रबार| थारु संम्बत:२६४७

लर्का पढाइ, समाज बनाइ

लर्का पढाइ, समाज बनाइ

बटकुही
‘यि शिविरके समस्या ‘छुमन्तर’ले समाधान करम । किउफे भोका नाङ्गा नैरहि । किउफे शिक्षासे बन्चिट नैरही । सक्कु जहनके नाउँके नामके लालपूर्जा बनि । घरैपिच्छे रोजगारी व्यवस्था हुइ । महिन जिटंैबो टे सोचो टुहनके दुःखके दिन ओरागील । सुखके दिन आइ । साँझ–विहान मासुभात, आङमे नयाँ ओ चहकार लुग्गा । गोरामे नयाँ जुत्ता, हाटैहात हरियर नोट । ओहो का का हो का का ..।’ वडा अध्यक्षक् उम्मेदवार दिनेश भट्ट कठ्वक कुर्सीम् चहुँरके डुख्वा थारुक अङ्नम हाँत झम्का झम्का भासन छाँट टहैं । मने ऊ प्रधानमन्त्रीके उम्मेदवार हुइँट । आँजर पाँजर शिविरके पूर्व कमैया, कमलरी, कमलर, गाउँक औरे थारुलोग ध्यान डेके सुनटहैं । बरा मीठ भासन सुनके शिविरके थारु–जन्नी, लर्कापर्का, बुढापाका सक्कुजे मुस्कुराई टहैं । सोचतहैं “फुरसे आब हमार दुःखक् दिन गैल । दिन फिरगिल । मनै फिरगिलैं । समयफे फिरगिल । कहाँसम दुःख रही ? हर्टी हेर्टी हमार दुःख डगरिक् ‘धूर’ हस हावामे उर्ना होगिल ।’

२०७४ सालमे स्थानीय तहके निर्वाचन घोषणा कैगिल रहे । तीन चरणमे कैगिल घोषणाअनुसार प्रदेश ३, ४ ओ ६ मे २०७४ वैशाख ३१ गते । प्रदेश १, ५ ओ ७ मे असार १४ गते मिति तोकगिल । प्रदेश २ मे असोज २ गते निर्वाचन हुइल । प्रदेश ७ अन्तर्गत पर्ना धनगढी उपमहानगरपालिका १७ धुर्जन्ना मुक्त कमैया शिविरमे २०७४ जेठ ३० गते जाके भट्ट भासन छाँट टहैं । हुँकार सहयोगी, कार्यकर्ता ओ पार्टीक् जिल्ला नेता लोगफे सँगे रहिट । भट्ट भासन करे भिर्टीकिल पर्रपर्र–पर्रपर्र थप्री बजे लागल । हुँकार सहयोगी कार्यकर्ता ओ दलके मनैनहे थप्री मारट् देखके शिविरके थारु लोगफे थप्री बजाडेलैं । शिविर थप्रीले चैनार होगिल । लग्गे रहल गाउँक् मनै ओ डगरघाटमे नेङ्गुइया मनैफे थप्रीक् आवाज सुनके ओनाइ लग्लैं । ‘आज दुख्वक् अङ्नम मेला लागल बटिस्, बहुट मनै जम्मा हुइल बटैं’ शिविरके अङ्ना थारु मनमने सोंचल । ऊ खैंचा लेके खेत्वामे घाँस काटे गैल रहे । खेत्वा जाइबेर सुनसान अङ्ना लौटके आइल टे दुख्वक् घरम् मनै भरल देखल । डग्रीम्से विचारल– ‘सायद हुँकार घरम् कुछु समस्या परगिल कि ? सरकार लालपूर्जा बाँटे आइल बा कि ?’ दूरेसे मनम बाट खेलैटी अङ्ना दुख्वक् अङ्गनम पुगल । ओहाँ लावा–लावा मनैन देखके ऊ छक्क परल । एक्ठो मनैयाहे बरबर बरबर कर्टी बोलट सुनके घरक् मेडौकीटिर बैठके बाट सुन्तीरहल ललपूरियाहे पुछल–

‘अहोई ललपूरिया ! यी का मेला लागल बा होई ?’
‘नै सुन्थी का ? ध्यान डेके ओनाइ ना, बुझजिवी झे’ ललपूरिया धिरेसे कहल ।
‘मै टे नै बुझ्ठुँ हो, भर्खर अइनु टबमारे । सरकारी मनै लालपूर्जा डेहे आइल बटैं का हो ?’ फेन अङ्ना पुछल ।
ललपूरिया झोंक्कैटी कहल– ‘अरे का लालपूर्जा डेहे अइहीं । चुनाउ आइटा कटि हुँ । भोट मागे आइल बटैं । हम्रे भोट देव टे सक्कु हमार समस्या समाधान होजाइ कहटैं, ध्यान डेके सुनो ना ।’

अङ्नक् मनम् आउर खसखस हुइलिस् । घाँस काटके बीच्चेमे अइलक कारण ऊ सक्कु बाट नै बुझ्ले हो । ओकर डाइ उहीहे अङ्नम पैलिस् कटि हुँ । टवमारे ओकर नाउँ ‘अङ्ना थारु’ पर्लिस् । ललपुरियक् खास नाउँ टे दुःखीराम थारु हुइस् । लालपुर गाउँसे भोज कर्लक् मारे गाउँमे सक्कुजे उहीहे ललपुरिया कठंै । भासन आभिन रुकल नै हो । वडा अध्यक्षके उम्मेदवार ‘भट्ट’ उलर उलर बोल्टी बा । कुर्सीम् उँचियाके बोलटा, टौनफे लेंरी उँच्याई नै छोर्ले हो । दुःख्वक अङ्गना चाकिल बटिस । टौनफे मनै खचाखच भरल बटैं । मनैन देखके ‘भट्ट’ आउर हौसल बा । गाउँभरिक मनैन अक्के अङ्नम जुटल डेखके ऊ खुशी हुइटी लम्मा भासन ठोकल–

‘देशमे लोकतन्त्र आइल । गणतन्त्र आइल । आब हाम्रे सक्कु बरावर हुइ । किउ राजा नैहो । किउ रैटी नैहो । आब हाम्रे सक्कु दाजुभैया दिदिवहिन्या । सक्कु समान नेपाली नागरिक । टुहनके दुःख मोर दुःख, मोर दुःख टुहनके दुःख । मोर खुशी टुहनके खुशी, टुहनके खुशी मोर खुशी । का हिमाल, का पहाड का तराइ, आब किउ नै हो पराइ । आब किउ सुकुम्बासी नैहुहि । किउ भूमिहिन नैरहही । किउ दुःखसे रुइ नै परि । आब अस्टे झोपरीमे बैठे नैपरि । जट्रा बैठना रहे बैठ डरलो । आब निर्वाचन जिटके हम्रे आइल पाछे टुहनके गाउँके मुहार फेर्र्बी । सक्कुनके नाउँमे जग्गाके लालपूर्जा ठमैबि । हेर्टिहेर्र्टि टुहरे सक्कुजे जग्गाके मालिक बन्बो ।’ भट्टक् करल भासन कत्राजे बुझ्लैं खै ? आधा मनैं बुझल हुइही आधा मनैं नैबुझलफे हुइहीं । मने सक्कुजे सहमतिमे अपन कपार टौकाडेलैं । सहमतीमे थप्री बजादेलैं । दुइ घण्टा भासन कैके भट्ट समूहक् मनैं नगद १० हजार रुपियाँ डुख्वाहे ठम्हाके औरे गाउँओर गैलैं । ‘शिविरके सक्कु मनै सन्झ्याके शिकारभात खैहो’ कहिके ऊ रुपिया डुख्वाहे जिम्मा लगैले रहैं । डुख्वा थारु शिविरके अगुवा हो । टवमारे ओकर घरम सक्कुजे जम्मा हुइल रहैं ।

एक टोली जैटिकिल डोसर पार्टीक् टोलीफे डुख्वक घरम पुग्लैं । भट्टक् नान्हे भाषण ठोकके चलगिलैं । सन्झ्या हुइ लागल रहे । टवमारे आब कोइ नै अइहीं कहिके शिविरके मनै सन्झ्यक खैनापिना तयारी कर्नाओर लग्लैं । हातमे दश हजार रुपियाँ परल रहिन् । डुख्वा शिविरके ‘रमैया’ ओ ‘झग्रु थारु’हे पाँच हजार रुपियाँ डेके ब्वाइलर मुर्घी लानक अह्राइल । परोसी डुमल्या गाउँमे मुर्घीपालन कैगिल बा । ओहैं जाके हाथम् परल सक्कु रुपियक मुर्घीक् शिकार किनके लान लेनैं । मलाहा गन्जीया भर्के शिकार भठ्ठामे टङ्गाके लैअन्लैं । बाँकी रुपियक डारु ओ जाँर किन्ना डुख्वा शिविरके मनैनहे सुनाइल । गाउँक् कुछ जनेवनहे भातभन्सा करे लगैलैं । शिविरमे ३० घर बा । आज सबके बेरी डुख्वक घरम् पक्ना हुइल । शिकारभात ओ जाँरडारु पिए मिली कहिके शिविरके थारु खुश बटैं । खैनापिना तयार कर्लैं । गाउँम्से घरे बैठाइल घरैया डारु ओ डोकानसे विदेशी डारु किन्लैं । घरैया डारु जर्कीनके जर्कीन आगिल । ‘दिनभर भासन सुनडेलसे सन्झ्याके शिकारभात खाइ मिली कलसे अत्रासे मजा काम कहाँ मिली’ डुख्वा सम्झल् । शिविरके सक्कुजाने बैठके बेरी खेलैं । लर्कापर्कनहे पहिले खवाके जाँर डारु पिउइया टोली डुख्वक् बहरी अङ्गनामे खर्रा विछाके बैठलैं । चुनावी अभियानके शिविरमे यी पहिला भोज रहे ।

‘अहोइ डुख्वा डाडु ! हम्रे दुइ घण्टा ओइनके भासन सुनडेली टे १० हजार रुपियाँ दैदेलैं । बरा लिरौसीसे रुपियाँ कमाइ मिली टे रोजदिन अस्टके भासन सुनडेव हो, ना ?’

टेप्रा भरके शिकार ओ डोनी भरके जाँरडारु आघे धरल बा । शिकार सँगे सबजे डारु सटासट टन्लैं । बरुइया जनेवनफे अपन भाग अगोर्टी खैनामे साथ डेलैं । जस्टके जाँरडारु ओइनहे छुलिन् ओस्टके राहरङ्गी कर्ना सुर चहर्लीन् । डुख्वक घरम पुरान मन्डरा रहिस् । खरन जम्मा छुटल । नै बज्नाहा मन्डरा रलसेफे मत्वारके धुनमे ओहे मन्डरा ठठा–ठठा बजेलैं । जन्नीनके लेहङ्गा लगाके नाच करे भिर्लैैं । एक्ठो टोली खैनापिनामे व्यस्त रहल । जन्नी मनै थारुनके नाच ओ सोङ हेर्नामे लग्लैं । डोसर टोली जाँर डारु पिना ओ चुनावी बाटचिट कर्नाओर लागल । शिविर चैनार होगिल । लर्कापर्काफे शिकारभात खाइ भेटाके खुश बटैं । बिना टिहुवारफे शिकार भात खाइ मिलल कहिके शिविरके मनै डङ्ग पर्लैं । ओहेबेला डुख्वक्सँग बैठल एक समूह बाटचिटमे व्यस्त हुइल ।

‘अहोइ डुख्वा दादु ! हम्रे दुइ घण्टा ओइनके भासन सुनडेली टे १० हजार रुपियाँ दैदेलैं । बरा लिरौसीसे रुपियाँ कमाइ मिली टे रोजदिन अस्टके भासन सुनडेव हो, ना ?’ अत्वारी थारु कपार हिलैटी पुछल ।
‘चुनाउ आइटा जे हो । १४ गते टे भोट डारे जैना बा, कटि हुँ । डिनके भासन करट नै सुन्लो ?’ डुख्वा जवाफ डेहल ।
‘ठीके टे बा हो, संघारी । अभिन पानी परल नै हो । बर्खाबुन्डीफे शुरु नै हुइल हो । भोट दारदेव बलैहीं टे’ सँगे बैठल मङ्गरु थारु कहल ।
हुँकार बाट सुनके बजारु कहल, ‘अरे जिही पैना ऊही बोट डर्ना हो का ? हमार माग पूरा जे करी ओहे मनैयाहे बोट डारब काहुँ । आभिन औरे जनहनके बाटफे सुन्ना बाँकी बा ।’

‘ठीक कली भैया, हम्रे शिविरमे बैठल बटी । हमार नाउँमे लालपूर्जा नै हो । बन्वक किनार लडियक छोरल जग्गामे बटी । नाप नक्सा कैके हमार नाउँमे जे लालपूर्जा बनाडि उहीहे बोट डारब” डुख्वा थारु बोलल ।
ओकर बाट सुनके अत्वारी फेन ठपल “अरे दादु यी रुपिया देहुइया मनैयाफे ठीके बाट बत्वाइल । लालपूर्जा डेम, घर पक्की बनाडेम कले बा । जात्तीक बनाडि कि बाटे किल हुइस् ?’
डुख्वा हँस्टी कहल् “अरे लालपूर्जा डेम, घर बनाडेम कहुइया सक्कु मनै काम थोर ना करहीं । बोट लेहक लाग बरा बरा बाट टेजे फे बत्वाइठ् । सल्लाह करके बोट डारब ।’

‘आझुक चुक्की टे मजा हुइल । काल्हफे भोट (बोट) मगुइया दोसर मनैया आइ कलसे फेन पैसा मागे परी हो दादु’ मङ्गरु प्रस्टाव ढरल ।
‘अरे बोट नै डारट सम टे अस्टे चली । बस भासन सुन्ना कामभर करे परी । रुपियाँ पैसा डेहुइया टे टमान पार्टी आजिहीं । औरे बेला हम्रहिन के पुँछी ? यिहे टे मौका हो खैना पिना” डुख्वा हौसला डेहल ।

ओइनहे डारुक नसा लागगिल रहिन । बोलेबेर बाट लर्बराइ टिहिन् । एकओर ‘चकढौं चकढौं’ मन्द्रक टालमे मनै नाचटहैं । नसाके सुरमे सोङ कहारटहैं । डोसरओर बहरिक कोनुवामे बैठके डुख्वा ओइने चुनावी बाट बत्वैनामे व्यस्ट रहैं । खैती पिती रातके १२ बजगिल । ‘महा रात होगिल आब सुटे जाइ परल’ कहिके डुख्वक जन्नी कहलिस् । डुख्वा शिविरके नाइके हो । शिविरके मनै उहीहे अगुवा बनैले बटैं । ओकर कहल बाट सब जाने मन्ठैं । अङ्गनम निकरके डुख्वा कहल–

‘होगिल ! आज रात छिपगिल । आजके राहरङ्गी अत्रे करी । काल्ह काममे जैना बा । आपन कामफे हेरे परल । चलो सुटी आब । डुख्वक बाट सुनके मन्डरिया शुक्रा थारु मन्डरा बजाइ बन्द कैडेहल । मन्डरा बजे बन्ड हुइल टे नचनियाँ ओ सोङ्याफे पुत्ठा डुम्कैना बन्ड कर्लै । नसामे चुर रहल मनै लर्वरैटी घरक पाछेओर जाके पिसाव फेर्लै । ‘हाँ जात्तिक महा रात होगिल काहुँ, खटोल्ना उप्पर आगिल बा’ अङ्ना थारु मुत्ती–मुत्ती उप्पर बद्रीमे हेर्टी कहल । उही मुतत् डेखके डुखीरामफे छेउमे जाके सोझार डेहल । डुनुजाने मुटासल रहैं । बरा बेर धर्काके ओइनहे सनच लग्लीन् । डुनुजाने कलैं ‘चली गोची आब सुटी, नै टे काल्ह विहानके काममे जैना हर्जा होजाइ ।’ डुख्वक घरम जम्मा हुइल शिविरके सक्कु मनै अपन अपन झोंप्रीम सुटे गैलैं । एक घचिमे शिविर सुनसान होगिल ।

एक अठ्वार सम गाउँघरमे चुनावी सरगर्मी चलल । समुह समूहके उम्मेदवार ‘हुल’ बाँधके भोट मागे अइटी रलैं । कमैयनके शिविर हरेक दिन भोजाही हस चैनार हुइटी रहल । भोट मागे अउइया कोइ ना कोइ उम्मेदवार पाँच–सात हजार रुपियाँ शिविरमे फेंक्टी रलैं ।

एक अठ्वार सम गाउँघरमे चुनावी सरगर्मी चलल । समुह समूहके उम्मेडवार ‘हुल’ बाँधके भोट मागे अइटी रलैं । कमैयनके शिविर हरेक दिन भोजाही हस चैनार हुइटी रहल । भोट मागे अउइया कोइ ना कोइ उम्मेदवार पाँच–सात हजार रुपियाँ शिविरमे फेंक्टी रलैं । डुख्वा थारुके अगुवाइमे शिविरमे अठ्वार सम चुनावी रमझम चलल । जब मतडान कर्ना २४ घण्टा आघे भोट मागे नैमिल्ना, प्रचार प्रसार करे नैमिल्ना उर्डी हुइल । टव गाउँफे सुनसान बनल । उम्मेदवारलोग रातके गाउँमे जाके भोट मग्लसेफे दिनके कोइ गाउँमे नैपुगल । ओहेबेला गाउँक् एकजाने विद्यार्थी ‘सोमलाल थारु’ शिविरमे गैल । ऊ कैलाली बहुमुखी क्याम्पसमे स्नाटक टेसर बरषमे अध्ययन कर्टी रहे । गाउँमे टमाम दलके नेतालोग समूह बना–बना भोट मग्लसेफे ‘किहीहे भोट डेना हो’ शिविरके मनैनहे पता नै रहिन् । जे शिकार मच्छी, जाँर डारु पिएक लाग पैसा डेहल ओहे उम्मेदवारहे भोट डर्ना डुख्वा हुक्रे सोच्ले रहैं । सोमलालहे विहान्ने शिविरमे डेखके डुख्वा शिविरके मनैनहे बोलाके छलफल चलाइल् ।
‘अरे सोमलाल भतिज रामराम ! कहिया अइले धनगढीसे ? क्याम्पस छुट्टी बा का भटिज ?’ डुख्वा जिज्ञासा राखल ।
‘रामराम काका ! चुनावके कारण क्याम्पस छुट्टी बा । टवमारे गाउँ अइनु काका’ सोमलाल उत्तर डेहल ।
‘समयमे गाउँ आके ठीक कैले भतिज । हम्रे यहाँ दोधारमे बटी । किहीहे भोट डर्ना हो कहिके डुख्वा कहल ।
‘गाउँमे चुनावके चहलपहल कैसिन बा टे काका ? के के भोट मागे आइल ? विचार कैके भोट डरहो काका’ सोमलाल सुझाव डेहल ।
‘भोट मागे टे टमान डल अइलैं भतिज । एमाले, माओवाडी, काँग्रेस, राप्रपा, जनमोर्चा, साझा पार्टी, सक्कु डलके मनै भोट मागे आइल रहैं । गाउँक् जिम्डर्वक छावाफे राप्रपासे उम्मेदवार बटिस् कहिके भोट मागे आइल रहैं । गाउँक मनैयाहे सहयोग कर्ना हो कि किही कर्ना हो ? हम्रे निर्णय करे नै सेक्ले हुइ भतिज दुख्वा चिन्ता सुनाइल ।

शिविरमे बैठुइया मुक्त कमैया हुक्रे ओहे जिम्दर्वक घर दुइ–तीन पींढी कमैया बैठके जिन्गी गुजर्लै । ओहे जिम्दर्वक छावा राप्रपासे वडा अध्यक्षके उम्मेदवार बनल बा । औरे डल एमाले, माओवाडी, काँग्रेस सेफे फरक फरक मनै उम्मेदवार बटैं । कोइ पठरी गाउँसे उम्मेदवार बा टे कोइ उर्मासे । कोइ डुमलियासे टे कोइ बनबेहडासे । ‘सक्कुजाने भोट महीं डेहो कहिके कले बटैं । कुछ रुपियाँफे शिकार भात खाइक लाग सहयोग कर्लै’ डुख्वा सोमलालहे सुनाइल् ।

डुख्वक बाट सुनके सोमलाल कहल– ‘चुनावके बेला सक्कुजाने लोभ देखैथैं काका । शिकार मच्छी, जाँरडारु फे पिवठैं गाउँक सिधासाधा मनै ओहे शिकारभात ओ जाँरडारुमे बिकजिठैं । बरा–बरा सपना डेखाके भोट बिटार्ठैं । जिटके गैलसे घुमके गाउँघरमे नैअइठै । टबमारे भोट डेहेबेर बहुट विचार करे परठ् काका । जे अपन कहल मानी, जे समस्या बुझी, जे दुःखसुखमे साथ दी ओहे दल ओ उम्मेदवारहे भोट डारे परी । हम्रहिन ‘जमिन्दार नै इमान्दार’ उम्मेदवार चाहल बा । छिमेकी उर्मा गाउँक् थारु मनैया वडा अध्यक्षके उम्मेदवार बटैं । चाहे ऊ जौन राजनीतिक दलसे उम्मेदवार हुइहीं, कोइ फरक नै परी । थारुन्के समस्या थारु मनैयासे धिउर औरेजे कहाँ बुझ्हीं । सहयोग कर्ना प्रतिवद्धताफे जनैले बटैं । काम नैकरहीं टे गरियाइफे सेकजाइ । औरे जहन कहाँ सेक्बो गरियाइ । ओइने टे थारुनके दुःखसुखमे साथ कहाँ डिहीं ? टवमारे ‘इमान्दार’ उम्मेदवारहे यी पाली सक्कुजे सहयोग करे परी काका ।’

बरा–बरा सपना देखाके भोट बिटार्ठैं । जिटके गैलसे घुमके गाउँघरमे नैअइठैं । तबमारे भोट डेहेबेर बहुट विचार करे परठ् काका ।

सोमलालके बाट डुख्वासहिट गाउँक् डुखीराम, अङ्ना, रमैया, झग्रु, अत्वारी, सोमना, मङ्गरु, शुक्रा ओ कुछ जन्नी मनै ध्यान देके सुन्लैं । ओकर बटमे ‘हाँ मे हाँ’ मिलैलैं । सोमलालके बट सुनके बजारु पुछल– ‘कोइ कोइ टे थारुफे खराव रठैं भाइ ? हम्रहिन सहयोग करहीं का थारु उम्मेदवार ? भोट लेके बिस्रा टे नै डरहीं ?’

बजारुक् बाट सुनके सोमलाल कहल– ‘मै आज सन्झ्याके ऊहीनहे यहाँ बोलैले बटुँ । रातके सङ्गे बेरी खाब ओ अपन समस्या, शिविरके समस्या बारेमे सक्कु बाट बत्वाव् ।’ सोमलालके बाट सुनके सक्कुजे सहमटि जनैलैं । सन्झ्याके भेट्नागरी अपन काममे गैलैं ।
कल्वा खाके डुख्वा लेबरी काम करे गिल । गाउँक् ठेक्डर्वा धनगढी क्याम्पसरोडमे घर बनैना ठेक्का लेले रहे । शिविरके पाँच–सात मनै ओहैं लेवरी काम करैं । चुनाव लागल दिनसे नियमित कामफे नैरहे । मने चुनावी २४ घण्टे समय शुरु हुइलपाछे ओहे दिन ठेक्डर्वा ढलान करटहे । टबमारे शिविरके पाँच–सात जाने जन्नी–थारु लेबरी काम करे गैल रहैं । बन्टी रहल घरक् पँजरे बरवार महल बा । महलके आँजरपाँजर मेरमेरिक् फूला फुलल बा । छेउँमे छोटमोट पोखरीफे बा । पोखरीमे कटकुइयँक् फुला फुलल बा । भौंरा, मध्री फुलक रस लोहटैं । डुख्वा भौंरा ओ मध्रीनहे फुलक रस चुसट देखके कल्पना करल– ‘यी भोट मगुइया मनैफे यिहे फुला लोह्रुइया भौंरा ओ मध्रीहस टे हुइँही । जब चहना रस लोह्रना, फूला रस देहतसम चुस्ना, मुर्झागिलसे लौटके नै अइना । बहट सालके चुनावमे भोट डार सेक्ली । सक्कुजाने भोट डर्बो टे समस्या समाधान हुइ कठैं । मने हमार समस्या कोइ नै सुनल । यी सालफे लालपूर्जा देव, घर पक्की बनादेव टे कले बटैं । खै का हो का हो ?’ डुख्वा कल्पनामे डुवलबेला गिट्टी बोक्ती रहल अङ्ना थारु डुख्वाहे बोल्कारल– ‘अरे दादु कहाँ हेरागिली ? आइ हाली काम ओर्वाके हाली घरे जाव । सन्झ्याके सोमलाल भेट कर्ना कले बा, विस्रा टे नै धर्ली ?’ ‘हाँ हाँ भाइ, ली मै आइटुँ’ डुख्वा काममे लागल ।

काम कर्टी कर्टी दिन बुरे लागल । छेउक् पोखरीमे फुलल कटकुइयाँ फुला दिनक् रोसनीसँगे मुर्झाइ लागल । डुख्वा गिट्टी उठैटी रहलबेला ओकर नजरफे ओहे पोखरीक् फूलामे गैलिस् । मध्री फुलक रस चुस्टी रहलबेला कटकुइयाँ फुला चपक गिल । फूला जस्टेक चपकल मधरिया भित्तर कैद होगिल । डुख्वा सम्झल ‘यी मधरिया टे मरजाइ । यी फूलाफे कसिक चपकगिल ? दिनभर जाने कैठो मध्री फूलक् रस चुस्लैं । परेबेर यी मधरिया फन्डामे परल ।’ एक मन टे डुख्वा सोचल ‘फुलाहे टुरके मधरियक ज्यान जोगाडिउँ । फेन सोचल औरेक पोखरी हो । गैलसे बेकारमे गारी खाइ परी । छोर दिउँ । यी मधरियक काल आगिलिस् टे का कर्ना हो ?’ फूलक रस लोह्रती लोह्रती मधरियाहे फुला अपन गर्भमे छुपा लेहल । ‘विचारा मधरिया ! फूला लोह्रके का का सपना डेख्ले रहल हुइ, भित्रे मरगिल’ डुख्वा मनमने सोंचल – ‘मनैनके जुनीफे अस्टे टे हो । मनमे कनि का का सोच्ले रबो । कब काल आइठ् पतै नै हो । जस्ते मधरियक काल अइलिस् । ओहे फुला लोह्रके ऊ बँचल रहे । ओहे फूला ओकर ज्यान लैलेलिस् ।

टबमारे सबसे बलवान समय हो । समयअनुसार चले जन्लो टे जीवन सुरक्षित बा । नै जन्लो टे ओहैं ज्यानके खटरा । दिन रहटसम फूला फूली, दिन बर्टीकि फूला चपकजाइ कहिके मधरियक् बुद्धि नै पुग्लिस् । टबमारे ज्यान गुमाइल ।’ सोंच्टी सोच्टी ऊ चुनावी बाट सम्झल । ‘हम्रे भोट डेहुइया मनैफे यिहे फूला हस हुइ पर्ना हो । मधरिया, भौंरा टे उम्मेदवारलोग हुइँठ् । उम्मेदवार हुक्रे मधरिया बनके चुनाव आठथ् टे हमार घरओर भौंरा फूला लोह्रे हस भोट मागे अइठैं । औरेबेला किहुहे बाल मटलब ? फूला फुलटसम भौंरा, मधरिया फूलामे झुमल रठैं । फूला मुर्झैटिकिल ओकर महत्व ओरा जिठिस् । फूलामे रस ओरैतिकिल मधरिया, भौंरा झाँकी नै झँक्ठैं । डलके नेता, उम्मेदवारलोगफे ओस्टहँ हुइँठ् । टवमारे सोमलाल भतिजके डेहल सुझाव मननयोग्य बा । आज साँझके यी विषयमे बाट गम्भीरसे उठाइ परी ।’

ढलानके काम ओर्वाके डुख्वासहित गाउँक् मनै घरओर लम्कलैं । दिनबुर्वा काम ओरैलिन् । घर पुगतसम अन्धार होजाइ कना ओइनहे पता बटिन् । सोमलालहे फोन लगाके घर पुग्ना ढिला हुइ कहिके डुख्वा खवर करल । थारु उम्मेदवार गाउँमे पुग सेकल रहैं । सोमलाल आपन घरम् चिया पिवाके अस्रा लगैले रहे । तवसम गाउँमे दुई–चार घरमे लैजाके भोट मगाइल । दिनके भोट मग्ना बन्द हुइलसेफे अन्धार हुइल टे गुपचुपमे भोट मागे बन्ना हुइल् । औरे उम्मेदवारफे अचारसंहिता लागल पाछे गुपचुपमे भोट मग्ना काम शुरु कर्लै । मतदान हुइना दिनके आघेक् रातहे निर्णायक रातके रुपमे उम्मेदवार लोग बुझ्ठैं । रातभरमे मत परिणाम उलट–पुलट कर्ना डाउमे उम्मेदवार रठैं । अनेक आश्वासन, लोभ, पैसा खर्च करकेफे भोट आपनओर बिल्टैना कसरत ओइने कर्लै । ओहे सिलसिलामे थारु उम्मेदवार फे धुर्जना गाउँमे आइल रहैं । डुख्वा ओइने एक घण्टा पैडल नेङ्गके घर पुग्लैं ।

डुख्वा हुक्रे शिविरमे पुग्नासे पहिले शिविरमे खैनापिनाके तयारी उम्मेदवार ओ सोमलाल कर्वा रख्ले रहैं । हुइना टे ढलान कर्ना ठाउँमेफे ठेक्दर्वा शिकारभात खवैलिन् । शिविरमे फे शिकारभात पाकके तयार बा । डुख्वा हुक्रे घरे पुग्लैं टब सोमलाल उम्मेदवारसे बाटचित, छलफल शुरु कर्वाइल ।

‘गाउँम् एक्ठो मनै पह्रल रठैं टे डगर डेखैना सबके ज्योति बनके निक्रठैं । आज सोमलाल भतिज पहल नै कर्टै टे हमार मत खेर जैना रहे’ डुख्वा कहल ‘लर्का पढाऊ, जिन्गी बनाऊ ।’

‘रामराम ! मै मन्कुराम थारु । नेपाल कम्युनिष्ट पार्टीसे साझा उम्मेदवार बटुँ । यी चुनावमे महिन ओ हमार पार्टीहे भोट देवी टे अपनेन्के समस्या समाधानमे पूरा सहयोग करम । बरा–बरा सपना डेखैना टे गलत बाट हो । लेकिन मै जिटम कलसे अपनेनके घरम जस्ता (टीन) के छाना लगैना प्रयास करम । लर्कापर्का पढैना उचिट बन्डोबस्टके पहल करम । शिविरमे पीना पानीके व्यवस्था ओ लालपूर्जाके लागफे सेक्नासम पहल करम । अपने हम्रे थारु समुदायके मनै हुइ । राज्यसे चेपुवा पाके पाछे परल बटी । सक्कुजे मिलके काम करब् कलसे हमार गरिबी हाली अन्त्य हुइ । चुनावमे टमाम दलके उम्मेदवार उठल बटैं । सक्कुजे सपना देखैले हुइँही । लोभ लालच ओ ओइनके देखाइल सपनमे ना भुलजिवी । महीहे भोट देके जिटैबी कलसे मै अपन घरक समस्या मानके समाधानके लाग पहल करम । अपन अमूल्य भोट खेर ना फेक्बी । यकर बहुट भारी मूल्य बा ।’ उम्मेदवारके बाट बिन ओरैले बजारु बाट काटल–

‘हमार भोट कैसिक मूल्यवान हुइठ् उम्मेदवारजी ? हम्रे भोट दर्ना ओ नै दर्नासे का फरक परठ् ?’
बजारुक् जिज्ञासा पाछे उम्मेदवार प्रष्ट पर्लै – ‘यिहे बाट नै बुझके टे हम्रे पाछे परल बाटी हजुर । हमार एक–एक भोट (मत) के बरा भारी महत्व बा । अपनेनके भोट टे राजनीतिके लाग सबसे बल्गर टाकट हो । जनमट हो । यकर बराबर भारी शक्ति औरे कुछ नै हो । अपनेनके मतसे सरकार परिवर्तन हुइठ् । देशके आर्थिक व्यवस्था परिवर्तन हुइठ् । शासन व्यवस्था फेरबदल हुइठ् । राणा शासनके अन्त्य, पञ्चायती व्यवस्थाके अवसान, राजतन्त्रके अन्त्य फे यिहे जनमतके टाकटसे ढलल् । यिहे मतसे मनै ‘नेता’मे स्थापित हुइठैं । ओहे मतके सहायतासे देशके राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री, मन्त्री, सभामुख, सांसद बन्ठैं । नगरपालिकामे मेयर, गाउँपालिकामे अध्यक्षसे लेके वडा अध्यक्ष सम सक्कु चुनजिठैं । अपनेनहे लागठुइ भोटके का अर्थ बा ? ओइसिन कबु ना सोच्बी । अपन मतके महत्व सक्कुजे मजासे बुझ्बी ।’

उम्मेदवारके बाट सुनके बजारु चुकचुकैलैं । ओहो अत्रा भारी शक्ति बा हमार भोटमे । हम्रहिन का पता ? करिया अक्षर भैंस बरावर । हम्रे टे खैना पिना चिजसे अपन मत साँट डेठी । पाँच–सात हजार रुपियाँमे गाउँ भरिक् मत लिलाम कैडेठी । आज अपने हमार आँखी खोल डेली । हमार मत ओ जनमतके बाट बुझाके भारी ‘गुन’ लगादेली ।‘उम्मेदवारके बात सुनलपाछे शिविरके सक्कु थारु इमान्दार उम्मेदवारहे भोट दर्ना निर्णयमे पुग्लैं । सोमलालहे शिविरके सक्कु मनै धन्यवाद डेलैं । ‘गाउँम् एक्ठो मनै पह्रल रठैं टे डगर डेखैना सबके ज्योति बनके निक्रठैं । आज सोमलाल भतिज पहल नै कर्टै टे हमार मत खेर जैना रहे’ दुख्वा कहल ‘लर्का पढाऊ, समाज बनाऊ ।’

लक्की चौधरी


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