शुक बैशाख १४ , १४ बैशाख २०८१, शुक्रबार| थारु संम्बत:२६४७

थारु समुदायके हरेरी पूजाके बातचित

थारु समुदायके हरेरी पूजाके बातचित

थारु समुदायके हरेरी पूजाके बातचित
हरेरी पूजा थारु समुदायके एक संस्कृति हो । थारु परम्परा अनुसार थारु गाउँमे बियार लगाके सेकलेसे यी पूजा कैजाइठ । यी हरेरी पूजा काहे पुजठंै कलेसे गाउँक् किसान धानबाली हराभरा रहे ओ ढेर फरे कहिके हरेरी पुजा करठैं । यी पूजा गाउँ भरिक् किसान गाउँके बर्का गुरुवा केसौका ओ एक जाने ढकेहर रातभर जागके पुजा करठैं । यी पुजामे डेंउटन ढारके जखवा–जखिनियाँ बक्खारी, डिया, घोर्वा ओ बघुवा ढारके पुजा सुरु करठैं । डेंउटा चह्राइक लाग बटासा, नरिवल, सुपारी, कपुर, लवाङ, धुप, अगरवत्ती, आछट, करुतेलके डिया प्रयोग कैजाइठ् ।

हरेरी पुजा सन्झेक् खानपिन कैके गाउँक् सक्कु किसान जमा होके पुजा सुरु कैजाइठ । सक्कु देवी डेंउटनके नाउँमे डिया बाटी सुँगाके पुजा सुरु कैजाइठ । जब बर्का गुरुवा ओ ढकेहरवा सायर गइठैं टे भुटप्रेत गीत सुने अइठैं कना गुरुवनके कहाइ बा । उहे समयमे गुरुवा ओ केसौका गीत सुने आइल भूटप्रेत, पिचास, ओ मसानके पकरना काम करठैं । भुट पकरल अवस्थामे गुरुवा ओ केसौकक् खेल हेरेक लाग किसान हुँकरे रठैं । केसौकक् हाँठ लगलग ठरठर करी, टब्बे गुरुवा केसौकक् हाँठमे रहल भुटवक् कानी अंगरी पकरके भुटवाके आछटमे ढारके किसनवन् डिहट ।

टब किसान हुँकरे लेके किल्लासे हरेक पुरान फारहिम ठोक डेठैं । यी दिन रातभर जागके गीत गाके धानबाली हराभरा हुइ कहिके पुजा करठैं । जब बिहान हुइठ टे गुरुवा ओ केसौका लाहाके सक्कु देवी डेंउटन घिउमे पकाइल पुरी, भात, बटासा, नरिवल, धुप, अरबत्ती, लवाङ, कपुरसे पुजा कैजाइठ । डेंउटा हुकनके लाग बनाइल प्रसाद गाउँके लवन्डन प्रसादके रुपमे डेजाइठ । उहे प्रसाद गाउँके सक्कु किसान हँुकरे धानबालीमे डारेक लाग लैजिठैं ।

यी हरेरी पुजा पुर्खा हुँकरे पुज्टी आइल ओरसे अभिनफे धानबालीके लाग पुजा करटी बटैं । थारु समुदायके चलनमे हरेरी पुजामे सटन्जा फेन पुजठैं । जस्ते सात मेरके अनाज धान, गहुँँ, मकै, जौ, लाही, मसरी, केराउ, सरसो पुजठैं । गोरुसिंगेसे पश्छिउँ सिउराज टक ढकेहर हुइलेक ओरसे ढेर जाने गाउँक् किसान पुजा पुजक लाग अइठैं । कौनो कौनो गाउँक् किसान बिना ढकेहरके हरेरी पुजा करठैं । यी पुजा करेबेला गीत गइना फेन करठैं । गुरुवा, केसौका लगायत सक्कु किसान रातभर जागा रहिके सुन्ठै । जे सुटठ ओकरमे कजरा सेन्डुरके टीका लगाडेठैं । रात भर गाना गइना चलन बां । भलमन्सान घर रात भर नाच गान कर्ना चलन बा । जे सुटठ कलसे खारा लेना चलनफे बा ।

थारु समुदायमे अपन अलग पहिचान बोकल संस्कृति ओ टिहुवार बा । लकिन थारुनके यी कुल टिहुवार मनैना कौनो लिखित दस्तावेज नैहुइलेक ओरसे तिथि मितिमे एक रुपता नैहो । हरेरी पुजा यिबार लगाके, ढुरिया पुजा, यिबार लगाके ओ लवाँगी पुजा लावा धान कट्नासे पहिले कैजाठ । थारुनके यी पुजा ओ टिहुवार फेन अपन मेरके पहिचान बोक्ले बा । लकिन एमने एकरुपता नन्ना जरुरी बा । यी काममे सक्कु थारु बुद्धिजिबी एक होके लगना जरुरी बा । चलि सक्कु थारु एक होके परगा बरहाइ । थारु संस्कृति संरक्षणक ओ विकास लाग । धन्यावाद ।


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