शनिच्चर पुष ०६ , ६ पुष २०८१, शनिबार| थारु संम्बत:२६४७

भाषिक मृत्युसंगे पहिचानके सवाल

भाषिक मृत्युसंगे पहिचानके सवाल

भाषिक मृत्युसंगे पहिचानके सवाल
एक जाने कले रहैं, महिन हेरके कोइ मै थारु हो कहे सेकी ? मोर पहिरन हेरलेसे आधुनिक समय अन्सारके कोट पाइन्ट लगैठु । आब अप्नही कहि महिनहे चिन्हा ओ चिन्हैना डगर का रहल टे ?
अप्नही प्रतिजवाफ डेलैं, महिन चिन्हा चिन्हैना एकठो किल डगर बा, उ हो ‘भाषा’ । भाषा मोर पहिचान करैले बा । मै के हुँ कना बाट डेखैले बा । यी कहाइ हो वरिष्ठ संस्कृतविद् अशोक थारुके ।

अशोक थारुके नजरसे हेरलेसे भाषाके महत्वबारे ओस्टे फेन छर्लङ पारडेहठ । वरिष्ठ पत्रकार÷साहित्यकार डा.कृष्णराज सर्वहारी इन्डिजिनियस टेलिभिजनमे मुख्य करके भाषाके संरक्षण करना कहिके थारु भाषाके कार्यक्रम ‘चली गोचाली’ संचालन करलैं । ओ, यकर बागडोर अब्बे महिन सुम्पले बटैं । जोन काम हम्रे निरन्तर करटी बटी ।

पहिचानके लडाईमे लरटीरहल थारुलगायत अन्य आदिवासी जनजातिहुक्रे पहिचान ओ भाषा कैसिक जोरल बा कनाबाट प्रष्ट बुझेपरना अवस्था बा । यकर महत्व ओ अन्तर्राष्ट्रिय सम्झौता तथा नेपाली नीति बुझ्ना ओत्रे आवश्यक बा ।

भाषा कलेक मनमे रहल अपन बाट सहज रुपमे औरे व्यक्तिहुकनहे बुझैना प्रयोग हुइना एक महत्वपूर्ण साधन ओ कहि माध्यम हो । सरल तरिकासे हम्रे अइसिक बुझे सेक्ठी भाषाके परिभाषाहे ।

पहिचानके कडीसंगे जोरल भाषा संरक्षणके लाग अन्तर्राष्ट्रिय स्तरमे सन् २०१९ हे संयुक्त राष्ट्रसंघ ‘दिगो विकास, शान्ति ओ मेलमिलापके लाग भाषा’ कना नारासहित अन्तर्राष्ट्रिय आदिवासी भाषा बरस घोषणा करके बरसभर उत्सवके रुपमे मनैना घोषण करले रहे ।

एक दिनसे किल नैहुइठ कहिके संयुक्त राष्ट्र संघ ओ युनेस्को आदिवासी जनजातिके भाषा संरक्षणके लाग सन् २०२० से २०३० सम अन्तर्राष्ट्रिय आदिवासी भाषा दशक घोषणा करना तयारी समेत करले रहे ।

विश्वके टमान नब्बे देशमे करिव पचास करोड आदिवासीहुक्रे बसोबास करठैं । विश्वमे बोल्ना ७ हजार भाषामध्ये करिव ९५ प्रतिशत भाषा आदिवासीहुकनके मातृभाषा अन्तर्गत परठ । टबफेन ९५ प्रतिशतहे ५ प्रतिशतसे कैसिक निलसेक्ले बा कना बाट हम्रे छर्लङ डेखे सेक्ठी ।

मने सरोकारवालाहुकनके क्रियाकलाप हेरलेसे भाषा बरससे किहुनहे छसवल नैडेखाइठ । नेपालके संवैधानिक रुपमे गठन हुइल भाषा आयोग रहे या त्रिभुवन विश्वविद्यालयके केन्द्रिय भाषा विभाग रहे मौनजस्टे डेखैठैं । भाषा बरस घोषणा हुइल ओरसे नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठान ओ आदिवासी जनजाति उत्थान राष्ट्रिय प्रतिष्ठानके एक गोष्ठी बाहेक औरे काम कुट हुइल नैहो ।

विश्व तथ्यांकहे हेरलेसे एक सय से ढेर भाषा बोल्ना देशमे नेपाल २० औँ ठाउँमे परठ । नेपालके सन्दर्भमे आदिवासी जनजातिहुकनके बाट करना हो कलेसे नेपालमे बोल्ना एक सय तेइस भाषामध्ये एकसय सत्र ठो भाषा आदिवासीके बा । ११७ ठो आदिवासी जनजातिके भाषाके कारणसे विश्वमे ठाउँ बनैना सफल हुइल नेपाल ओहे भाषा संरक्षण करेपरठ कना नीतिगत तरिकासे आखिर काहे लागे सेकल नैहो कना प्रश्न फेन टेह्कल बा ।

यी तथ्याङसे का प्रष्ट करठ कलेसे छ ठो भाषासे एक सय सत्र आदिवासी भाषाहे कैसिक ओझेलमे परले बा कना बाट प्रष्ट डेखाइठ । उहिनसे फेन मुस्किलसे १३÷१४ ठो भाषाके किल वर्ण पहिचान, शब्द संकलन ओ व्याकरण निर्माण हुइल डेखाइठ ।

सबसे डरलग्ना बाट का बा कलेसे भाषा आयोगके तथ्याङ्कअन्सार आदिवासीके ३७ से ढेर भाषा मृत ओ प्रायः लोपोन्मुख अवस्थामे बा । करिव एक दर्जन भाषा मरसेकल फेन बा । टबफेन नेपालमे कत्रा मातृभाषा व्यवहारिक तवरमे अभ्यासमे बा वा ओइनके अवस्था कैसिन बा कनाबारे वैज्ञानिक अध्ययन हुइल भर नैपाजाइठ । विश्वभरके आदिवासीहुक्रे बोल्नो भाषामध्ये करिव ४० प्रतिशत अर्थात् दुइ हजार छ सय असी ठो भाषा लोपोन्मुख अवस्थामे बा ।

यी बरस फागुन ९ गते अन्तर्राष्ट्रिय मातृभाषा दिवस फेन नेपालमे सम्पन्न हुइल बा । मने प्रश्न यहाँ आइठ कि एक दिन दिवस मनाके का मातृभाषा संरक्षण हुइ टे ? वास्तवमे भाषा अप्नही नैमरठ, भाषा मर्न वातावरण राज्य संयन्त्रसे तयार करठ । कौन भाषा फैलैना, कौन भाषा हेरैना बाट राज्यके भाषा नीतिमे निर्भर हुइठ ।

आदिवासी जनजातिके भाषा सरकारी कामकाजके भाषा बने नैसेकलेसे फेन भाषासम्बन्धी कुछ काम भर सुचारु हुइटी आइल बा । यद्यपि अधिकांश भाषा राज्यके एकल भाषा नीतिके प्रभावस्वरुप दैनिक जनजीविकासंगे अभ्यासमे आइ सेक्ना अवस्था गुमा सेकले बटैं । उहिनसे नयाँ पिढीमे भाषा हस्तान्तरण करना, भाषाहे अभ्यासमे नन्ना सम्भावना कमे डेखाइठ । भाषा संरक्षण कार्य फेन चुनौतीपूर्ण रहल भाषा विज्ञहुकनके विश्लेषण बा ।

अन्तर्राष्ट्रिय श्रम संगठनके महासन्धि नं. १६९ ओ आदिवासीके अधिकारसम्बन्धी संयुक्त राष्ट्रसंघीय घोषणापत्र २००७ हे नेपाल सरकार अनुमोदन करसेकले बा । घोषणापत्रके धारा १३ से आदिवासीहे अपन इतिहास, भाषा, मौखिक परम्परा, दर्शन, लेखन प्रणाली ओ साहित्य पुनर्जीवित करना, प्रयोग करना ओ भावी पुस्ताहे हस्तान्तरण करना अधिकार स्थापित करले बा । ओ, धारा १४ मे आदिवासी जनजातिहुकनहे अपन मातृभाषामे शिक्षा प्राप्त करना अधिकार डेना व्यवस्था समेत रहल बा ।

अन्तर्राष्ट्रिय सम्झौतापत्रमे हस्ताक्षर करलेसे फेन उ व्यवहारमे भर लागु हुइल फाट फुट अंग्रिमे गने सेक्ना बा । मातृभाषा शिक्षा प्रणाली लागु करेपरठ टे कहठ राज्य संयन्त्र मने उ नीति कडाईके साथ लागु नैकरना ओ पालना करना कन्जुस्याइ करना फेन एक मुख्य कारण हो भाषा हेरैनामे । यी सम्बन्धमे राज्यके गम्भिरताके साथ ध्यान जाइपरना डेखाइठ ।

भाषा लोप हुइना कलेक हमार आदिवासीके अन्तर्निहित ज्ञान, संस्कार, संस्कृति, दर्शन, पहिचान लोप हुइना हो । कौनो फेन जातिके भाषा लोप हुइना कलेक उ जातिके किल नैहुके सिंगा राष्ट्रके क्षति हो । मने, भाषा मरे ओ बचे राज्यके लाग उ चासोके विषय नैडेखाइठ । तसर्थ हमार पहिचान, संस्कार संस्कृति बचाके ढरना दायित्व हमारे हो ।

आदिवासी जनजातिके पहिचानके मुख्य कडी भाषा हो । जोन भाषा राज्यके निकायमे प्रयोग हुइठ ओ राज्यके सरोकारभित्तर परठ कलेसे ओइसिन किल बचठ । यी बाट राज्य व्यवस्थासे डेखाइल बाट हो ।

भाषाविज्ञानमे, भाषा मृत्यु (लोप, भाषिक विलुप्ति ओ विरले फेन ग्लोटोफेगी) एक अइसिन प्रक्रिया हो, जिहिनसे बोली समुदायहे प्रभाव पारठ, जहाँ भाषिक क्षमताके स्तर, जोन कम भाषाके स्वामित्वमे रहल भाषिक क्षमताके स्तर घटाजाइठ । अन्ततः परिणामस्वरुप कौनो परिणाम प्राप्त नैहुइठ । भाषाके मृत्यु कौनो फेन भाषाके उखान, कथा, मिथक, गीत लगायत लोक साहित्य हेराइठ ।

भाषाके मृत्युहे भाषा अटे«सन (भाषा नोक्सान फेन कहिजाइठ) के साथ भ्रमित नैकरे परठ, जिहिनसे व्यक्तिगत स्तरमे भाषामे दक्षता गुमैना बाट फेन वर्णन करठ । भाषाहे हेर्ना नजरमे संयुक्त राष्ट्र संघसे १९४८ मे शारीरिक नरसंहार ओ मानवता विरुद्धके गम्भीर अपराध जस्टे भाषिक ओ सांकृतिक नरसंहारके बाट फेन महत्वपूर्ण मुद्दाके रुपमे छलफलसमेत हुइल रहे । अइसिक सर्सर्ती हेरलेसे आदिवासी जनजातिद हुकनके भाषाके आत्महत्या हुइल फेन माने सेकजाइ । आत्महत्या करना विवस करैना सम्बन्धित देशके सरकार हो ।

भाषाके मृत्यु तब हुइठ, जब भाषा अपन अन्तिम मूल वक्ता गुमाइठ । भाषा तब विलुप्त हुइठ, जब भाषा ज्ञात नैरहठ । भाषा संचारके एक मुख्य अंश किल नाइहो, यी पहिचानके महत्वपूर्ण पक्ष फेन हो ।

भाषा ओ आदिवासी हुकनके समावेश ओ बहिष्कार

भाषाके खतरा उपनिवेशवाद ओ औपनिवेशिक अभ्यासके प्रत्यक्ष परिणाम हो, जेकर परिणामस्वरुप आदिवासीहुकनके संस्कृति ओ भाषाके नाश हुइल । समायोजन, भूमिके विस्थापन, भेदभावपूर्ण कानुन ओ कार्यके नीति मार्फत सब क्षेत्रके आदिवासी भाषा विलुप्त हुइना खतराके सामना करटी बा ।

भाषिक साम्राज्यवादके फेन व्यावहारिक लाभ रहे । ढेर साम्राज्य बच्चाहुकनहे शाही भाषा सिखैना थप प्रयास करलैं । ओ, यी आधिकारिक भाषा बनैलैं, जेम्ने सब शिक्षा हुइल रहे । शाही भाषा बोलुइयनसँग शक्ति रहे, जबकि केवल मातृभाषा बोलुइयन सीमान्तकृत रहैं । यी एक क्षत्रीय राज्य प्रणालीके परिणाम से सायद फरक नैपरी ।

युरोपेली उपनिवेशवादहे यी नीतिसे आदिवासी भाषा सांस्कृतिक विनाशमे सहजिल बनाइल । यिहे बाट नेपाली राज्य संयन्त्रहे फेन जैना करठैं । उपनिवेशवादके समयमे, अन्य भाषा फेन मनैन्के टमान समुहके अन्तरक्रियाके रुपमे सिर्जना करल रहे । उदाहरणके लाग पिजिन ओ क्रियोल, जसमध्ये कुछहे अब्बे हाइटियन क्रियोल जैसिन भाषा कहिके फेन चिज्हजाइठ ।

नेपालमे फेन एकल भाषाके बर्चस्व ओ पहुँचसे अन्य आदिवासी भाषाहे सहजिले ढरकैना सफल हुइल बा । उपनिवेशवादसे एकडमके लाग विश्वके राजनीतिक भूगोल परिवर्तन करले बा ओ यी सबसे डेखैना क्षेत्रमध्ये एक भाषा फेन हो ।

अइसिक हेरलेसे यहाँ भाषाके किल मृत्यु नैहुइठ । भाषासंग जोरल उसमुदायके परम्परा, रितिरिवाज, चालचलन ओ सबसे भारी बाट पहिचानके मृत्यु हुइठ । आदिवासी हुकनके पहिचान ओ संस्कृति संरक्षणके संवाहक भाषा हो । कोक्रे लोप हुइ कलेसे आदिवासीके पहिचानके बाट कहाँ जाइ कना बाट एक डरलग्ना विषय फेन हो ।


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