‘अंगकहि पाटिर ढनिया रे जोबनकहि भारी,
जेबनके उमहल बठिन्याँ जोबन बेंचि जावइ ।
सजना
जब खेतीपाटीके दिन आइठ असार महिना सुरु हुइठ् टब सजना गैना सुरु हुइठ् । सजना मैना गैटी काम करे हसफे नै लागठ । पहिले हमार पुर्खा लोग सजना असिके गाइँट । चिरैंचुरुगंनके चिरबिर चिरबिर ढुनके संगे, असार महिनाके बरसल पानीके संगे सजना गैना चलन बा ।
‘अंगकहि पाटिर ढनिया रे जोबनकहि भारी,
जोबनके उमहल बठिन्याँ जोबन बेंचे जावइ ।
जोबनमे चलचलै ढनिया रे,उचर ढाउर,
कोइ छैला जोबनके रसिया, जोबन मोला लेउ ।
भिटरेसे निकरल छयल्वा रे अंगना भैनै ठाह्री,
कहो छैली जोबनके मोल, जोबन मोल लेहबुँ ।
एक लाख अंगकहि चोलिया मोर, डुइ रे लाख जोबनियाँ
टीन लाख साँवर ढनिया जोबन मोल लेउ ।
असार सावनके झरीमे धान लगैना काम सुरु कैजाइठ । बियार उखारे बेर छट्री ओ बरसाटी लगायट आधुनीक तरिकाके छाँटा ओहोरना चलन फेन आगैल बा । बैठक लाग प्रयोगमे अइना पिर्का, खटौलि, बेंररीमे बैठके बियार उर्खना चलन बा । अस्टेक बियार उखार जाइठ ।
खेतीपाती
धान लगैनासे पहिले खेट्वामे गोबर, मल डरलेसे धान फरगरसे फरठ । अझकल गोबर मलके सत्ता रासायनिक खाड मलके प्रयोग करठैं । पहिले ओ अब्बाके खेतीमे बहुट फरक आगैल बा । पहिलेक हमार बुडु हुकनके चलन अनुसार गोरु ओ भैसासे खेती करजाए । धान लगैनासे आघे खेट्वा तयार पारक लाग हर, जुवा ओ फरुवासे खेट्वा तयार कैजाइठ । हमार बुडु हुँक्रे असारमे सजना गाके धान लगैना चलन रहिन् । मने अझकल मनै अइसिन आलस होगैल बटैं । बियार उखारके धान लगाइक लाग खेट्वा जोटक् लाग आधुनिक तरिकाके टेक्टरलेके लेवा बनैठैं । पहिले सक्कु मनै सजना गाके रमइटी धान लगाइँठ् । जत्रा सिहरा लग्लेसेफें कर्रा महसुस नैहुइठ् । अझकलके मनै धान लगैनासे आधुनिक मेरके करठैं । पहिले हमार बुडु हुकनके चलनमे धान लगैना सुरु करनासे पहिले लावा कलुवा खैना चलन रहिन् । अझकल यी चलन हेरागैल बा ।
समुदाय
हमार थारु जातिनके समुदायमे बहुट जातके मनै बैठल बटैं । हरेक समुदायके चलन फरक फरक रठिन् । हमार थारु जातिनके लगाम, रहनसह बोली भाषा फेन फरक फरक बा । हमार थारु जातिमे डेंउटा पुज्ना चलन फेन फरक बटिन । ओस्टके थारु समुदायमे भोजभटेरमे सक्कु गाउँबासी हुँकरे फेन एकजुट होके काम करठंै । सक्कु गाउँबासी हँुकरे मिलके हमार समुदायमे रहल टिहुवार, पुरान पुरान गरगहना ओ नाचगान जोगाइ । थारु जाति हुँकरे अपन चलन छोरटी जाइटैं ओहेमारे संस्कृति लोप हुइटी जाइटा । थारु जातिनके समान ढकिया, सुप्पा डेलुवा, छिट्नी लगायट बहुट सामानके लोप होगैल बा । समुदायमे रहल चलन, टिहुवार ओ भोजभटेरमे फेन समुदायके आवश्यक परठ् । समुदाय एकठो मनै मनै मिलके बनाइल हो । हमार थारु जातिनमे बहुट जातके मनै बटैं । हमार अपन अलग्गे भासा बा । पहिचान बा । कला बा । साहित्य बा । अइसिके हमार थारु समुदायमे सजना गैटी खेतीपाती कैना चलन बा । ओहेमारे थारु प्रकृति पुजक् हुइटैं ।
रविता चौधरी
rabitachy63@gmail.com
©2021 All rights reserved | Tharunk.com